ગુરુવાર, 13 ડિસેમ્બર, 2018

मूल्यनिष्ठ समाजव्यवस्था के साथ समृध्ध और सुसंस्कृत राष्ट्रनिर्माण के कार्य में मिडिया का सहयोग अनिवार्य है.


लोकशाही के मुख्य चार आधारस्तंभ होते हे.संसद/धारासभा,कार्यपालिका,न्यायपालिका और चौथा स्तंभ हे मिडिया.यह चारों स्तंभ अगर मजबूत हे तभी लोकशाही टिकी रहती हे.यह चारों में से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण स्तंभ मिडिया हे.क्यूंकि मिडिया बाकि के तीनो स्तंभ पर नजर रखता हे.बाकि के तीनो स्तंभ को मिडिया सतर्क रखता हे और देशहित में कार्य करने का कर्तव्य याद दिलाता रहेता हे.अखबारों के साथ टीवी चेनल्स,वेबसाइट और मोबाईल एप भी मिडिया का ही हिस्सा हे.

हमारे देश का सौभाग्य रहा हे की अंग्रेजो के सामने आवाज उठानेमें उस समय का मिडिया अग्रेसर रहा था.चाहे वो अमृत बाज़ार पत्रिका हो या केसरी,ग़दर हो या पंजाबी या फिर गुजरात में सौराष्ट्र और जन्मभूमि-फुलछाब नामक अमृतलाल शेठ के समाचारपत्र.सभी ने बिना कोई डर अंग्रजों के सामने आवाज उठाई.किन्तुं जब आज़ादी के कुछ सालों बाद देश में जब आपातकाल लगाया गया तब समाचारपत्रों का गला घोंट दिया गया और जो सरकार कहे वहीँ खबर प्रसिध्ध करने का नियम लागु हुआ तब लालकृष्ण अडवाणीजी कहेते हे यूँ सरकारने सिर्फ जुकने को कहा था लेकिन कुछ माध्यमो ने तो साक्षात् दंडवत कर दिया.हालांकि उस समय कई ऐसे भी समाचारपत्र और सामायिक थे जिन्होंने देश के प्रति अपना फर्ज निभाया और आपातकाल के सामने हुई नागरिक स्वतंत्रता की लड़ाई में अपना अमूल्य योगदान दिया.

जिस देशमें मिडिया का व्यवसायिकरण होने लगे और मिशन के बदले जब मिडिया सिर्फ प्रोफेशन बनकर रह जाये उस देश के भविष्य के सामने बहोत बड़ा प्रश्नार्थ खड़ा हो जाता हे.कोर्पोरेट कंपनियो को सीएसआर के तहत अपना सामाजिक दायित्व निभाने का दबाव डाला जाता हो तब राजकीयपक्षों के साथ साथ मिडिया भी अपनी सामाजिक जिम्मेवारी अच्छे से निभाए यह देश के उज्जवल भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक हे.सही बात पे तंत्र की टिका अवश्य करें,राजकारणी भी जब अपनी जिम्मेवारी नैतिकता से संभाले तब उसको निःसंकोच उजागर करें,भ्रष्टाचारीओं को भी समाज के सामने बेनकाब करके उसको त्वरित सजा मिले इसलिए तंत्र को टटोलते रहेना यह मिडिया का प्राथमिक फ़र्ज़ हे.किन्तुं सभी चीजों में सिर्फ और सिर्फ नेगेटिविटी ही फैलाना यह उदेश्य मिडिया का हरगिज़ नहीं हो शकता.भारत देश बहोत ख़राब ही हे,यहाँ कुछ अच्छा होनेवाला ही नहीं ऐसी छवि बने,हमारा बौध्धिक धन विदेश चला जाये और मिडिया के कारण विदेशों में भी देश की छवि ख़राब हो यह कितना उचित हे ?बलात्कार हो या कौभांड या फिर अन्य अपराध यह सब घटनाएँ विदेशों में भी होती रहती हे किन्तुं विदेशी मिडिया बिना अतिशियोक्ति विवेकपूर्ण तरीके से उसको दिखाती हे.११ सितंबर को अमरीका में हुए आतंकी हमले की एक भी नकारात्मक तस्वीर वहां के मिडिया ने नहीं दिखाई.

भारत के रूशीतुल्य पूर्व राष्ट्रपति स्व..पी.जे.अब्दुल कलामने लिखा था की भारत का मिडिया इतना नेगेटिव कयूं हे ? भारत देश कई बातों में आगे हे फिर भी भारत का मिडिया ही हरबार भारत की नेगेटिव इमेज क्यूँ दिखाते रहता हे ? उन्होंने लिखा हे की एकबार में इजरायल के दौरे पर था.में तेल अविव पहोंचा उसके अगले ही दिन इजरायल में हमास द्वारा आतंकी हमला हुआ था.मैंने सुबह एक इजरायली अख़बार पढ़ा लेकिन उस अख़बार के प्रथम पन्ने पर एक यहूदी सद्गृहस्थ की तस्वीर के साथ समाचार थे जिसमे किस तरीके से उस सद्गृहस्थ ने वहां के रेगिस्तान को हरभरा कर दिया उसकी स्टोरी छपी हुई थी.ऐसे सकारात्मक उर्जा से भरपूर समाचार सुबह में पढने मिले.बौंम धमाके या हत्या इत्यादि के समाचार अन्दर के पेज पर बहुत छोटी सी जगह में छपा था.

समाज और खास करके युवाओं पर मिडिया का बहोत बड़ा प्रभाव होता हे.आज का युवान निराशावादी अराजकतावादी बने और युवाओं की शक्ति का दुरपयोग हो इस प्रकार की समज विकसित करने में मिडिया की भूमिका अहम् हे.जीवन जीने की सही दिशा मिले उस प्रकार के बहुत सारे पोजिटिव न्यूज़ देश और दुनिया में बनते ही रहेते हे.ऐसे प्रेरणादायी समाचार ज्यादा से ज्यादा प्रसारित हो यह जरुरी हे.

सरकार के साथ साथ देश के नागरिकों को भी अपनी जिम्मेवारी के प्रति जागृत करना अत्यंत आवश्यक हे.हमारे यहाँ किसी भी चीज के लिए सरकार को ही दोषित ठहराने एक फेशन सी हो गई हे.पहेले राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के निवेदन कार्यक्रमों की जानकारी अख़बारों में प्रथम पेज पर हेडलाइन बनते थे.किन्तुं धीरे धीरे यह जगा नेगेटिव न्यूज़ ने ले ली.इस नेगेटिविटी के कारण नागरिकों में भी उदासीनता निराशा फैलाव बढ़ जाता हे. हद तो तब हो गई की कई अख़बारों ने १९९३ के मुंबई बौम्ब धमाके में दोषित त्रासवादी याकूब मेमन को फांसी हुई तब उसके प्रति लोगों को सहानुभूति हो ऐसा हेडिंग बनाया था.कमनसीब से अभी भी मिडिया का एक वर्ग हिजबुल मुजाहिद्दीन के त्रासवादीओं के लिए वर्कर’ शब्द का प्रयोजन करते हे.

सामाजिक सोहार्द बनाये रखने में मदद करने की अपनी जिम्मेवारी से भी मिडिया मुं कर दे और सामाजिक एवंम सांप्रदायिक वैमनस्य बढे ऐसे समाचार मसाला डालकर प्रसारित करे तब एक सच्चे देशप्रेमी को पीड़ा होना स्वाभाविक हे.इसी तरह भारतीय संस्कृति की सही बात लोगों तक पहुंचे,युवाओं में राष्ट्रगौरव जागृत हो,उतम चारित्र्य का निर्माण हो,प्रमाणिकता,वफ़ादारी,सत्य,अहिंसा,परिवार प्रेम,भाईचारा इत्यादि जैसे मूल्यों का सिंचन हो उस प्रकार के लेख समाचार ज्यादा से ज्यादा प्रसिध्ध करने के बजाय जब कोई मिडिया विकृति से भरे समाचारों को ज्यादा महत्व देता हे तब बहोत दर्द होता हे.देश का मिडिया अगर देशहित और समाजहित को ज्यादा से ज्यादा प्राथमिकता देगा तभी हम मूल्यनिष्ठ समाजव्यवस्था के साथ समृध्ध सुसंस्कृत देश होने का गौरव सुरक्षित रख पाएंगे.

किसीभी हालात में देश के युवाओं में अपने देश के प्रति कभी भी नफरत पैदा हो,सभी देशवासी देशहित को अग्रता दे,ज्ञाति-जाती धर्म की सीमाओं से लोग बहार निकलके राष्ट्रप्रथम की भावना के साथ देश की उन्नति के लिए सोचे ऐसे वातावरण का निर्माण करने में मिडिया ज्यादा से ज्यादा सहयोग दे और सभी मीडियाकर्मी संपूर्ण सकारात्मकता के साथ राष्ट्र के पुनरुत्थान कार्य में सहयोग देकर अपना देशप्रेम लोगों के सामने व्यक्त करते रहे इसी प्रार्थना के साथ भारत माता की जयवंदेमातरम्.

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