अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता के नाम पर देश विरोधी बकवास करना कितना उचित है ?
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हे । लोकशाही में सभी
को विचार और वाणी स्वातंत्र्य प्राप्त हे । या फिर कहे हम सब को अभिव्यक्ति की आज़ादी हे । संविधान के अनुच्छेद १९ (१)के तहत हर व्यक्ति को अपना विचार व अपना मत रखने का
पूरा अधिकार हे । तो दूसरी ओर
अनुच्छेद १९ (२) में देश की अखंडितता और भाईचारे को किसी भी हाल में कलुषित नहीं
होने देना और देश की सुरक्षा को खतरा हो ऐसा कोई भी कृत्य नहीं करना, यह भी बताया
गया हे । देश की सुरक्षा को खतरा हो,किसी को दुःख पहोंचे,किसी का अपमान हो, या
समाज में वर्गविग्रह हो ऐसा भाषा प्रयोग करने का संविधान ने किसीभी व्यक्ति को
किसी भी रूप से कोई अबाधित हक़ नहीं दिया । आज के इस माहोल में वाणी स्वतंत्रता और
वाणी स्वच्छंदता का भेद परखना बहुत जरुरी हे । आजकल वाणी स्वतंत्रता के नाम पर तथाकथित
बौध्धिक लेखको,अभिनेताओं और नेताओं को आये दिन देश विरोधी बकवास करते हम देख रहे
हे । वर्तमान समय में अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर कुछ भी बोलना मानो एक फेशन सी
हो गई हे और तथाकथित बौध्धिको का एक खास वर्ग अनुच्छेद १९(१) की आड़ में उनके
समर्थन के लिए निकल पड़ते हे । सोशियल मिडिया के अधिक प्रभाव के कारन भी इसका
दुरपयोग बढ़ गया हे । फ्रीडम ऑफ़ स्पीच के नाम पर किसी भी धर्म का अपमान करना,देश के
सर्वोच्च पद पर बैठे महानुभावो की खिल्ली उड़ानी,अपमान करना,देश का सोहार्दपूर्ण
वातावरण ख़राब करना,देश विरोधी तत्वों को प्रोत्साहन देना,अपने देश को निचा दिखाना
ऐसी घटनाएँ पिछले चार वर्षो में काफी बढ़ी हे ।
असहमति का साहस और विवेकपूर्ण सहमती ही लोकतंत्र की नीव हे । लोकशाही शासन व्यवस्था में सबको अपना मत रखने का अधिकार हे किन्तु आजकल तो मोदी विरोध में कांग्रेस का नेतागण इतनीं निम्नकक्षा पर पहुँच गया हे की वो देश विरोधी निवेदनबाजी करने में जराभी संकोच या शर्म मेहसूस नहीं करते । किसी एक धर्म विशेष के लोगों को खुश करने और अपनी वोटबेंक को बचाने के लिए कांग्रेस के नेताओं ने संविधान की सभी मर्यादाओ को पार कर दिया हे । हैरानी तो तब होती हे, जब राहुल गाँधी जे.एन.यु.में जाकर देश विरोधी नारेबाजी करनेवाले और आतंकी अफज़ल गुरु की बरसी मनानेवालो को खुल्लेआम समर्थन देते हुए कहतें हे की हम आपके साथ हे ! यही अफज़ल गुरु को कांग्रेस के प्रवक्ता प्रेस कान्फरंस में ‘अफज़ल गुरूजी’ कहेके संबोधित करते हे । शशी थरूर देश विरोधी नारेबाजी करनेवाले कन्हैया कुमार की तुलना शहीद भगतसिंह के साथ करते हे । दिग्विजयसिंह ओसामा बिन लादेन को ‘ओसमाजी’ कहेकर नवाजते हे । कांग्रेस के पूर्व केन्द्रीय मंत्री सैफुद्दीन सोज़ पाकिस्तान के परेवज मुशरफ के निवेदन को समर्थन देते हुए कहेते हे की कश्मीर को आजाद कर देना चाहिए । गुलामनबी आज़ाद ने भी कहा था की कश्मीरियो को आतंकियो से ज्यादा खतरा देश के सैनिको से हे ।
यह तो सिर्फ कुछ उदाहरण मात्र हे । बड़े दुःख की बात तो यह हे की आज कांग्रेसियो के निवेदनो को ‘लश्कर ए तोयबा’ का समर्थन मिल रहा हे । यह नए प्रकार की कांग्रेस हे जो देश को तोड़नेवाली ताकतों को अपनी भाषण विला से मदद कर रही हे । क्या अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश विरोधी बकवास उचित हे ? तंदुरस्त स्पर्धा,वैचारिक मतभेद,सतापक्ष की खामिओं को उजागर करना,प्रजा के प्रश्नों के लिए मुहीम चलाना,प्रजाकिय योजनाओं को ओर बहेतर बनाने के लिए सुजाव देना,संसद के अंदर रचनात्मक चर्चाएँ करना, ये सारी चीजे तंदुरस्त लोकशाही के हित में आवकार्य हे, किन्तु वाणी स्वतंत्रता के नाम पर देश की सुरक्षा खतरे में आये,देश विरोधी तत्वों को बल मिले इस प्रकार के निवेदन करना भी राष्ट्रद्रोह से कम नहीं हे । कांग्रेसियो और उनसे मिले हुए कुछ लेखकगण सराजाहिर देश विरोधी निवेदनबाजी कर रहे हे फिर भी उनका बाल भी बांका न हो, यह तो सिर्फ हिन्दुस्तान में ही संभव हे, क्यूंकि हमारा देश सही मायने में एक सहिष्णु देश हे, मगर ये हैरानी की बात हे की कुछ अभिनेताओं और नेताओं को इस देश में रहेने में फिरभी खतरा नज़र आता हे ।
अभिव्यक्ति की आज़ादी संविधान द्वारा प्रजा को मिली एक अनमोल भेंट हे । सबको अपना मत रखने का अधिकार हे किन्तु सता प्राप्ति की लालसा में देश विरोधी तत्वों को भूलसे भी बढ़ावा न मिले और इस देश का सार्वभौमत्व अमर रहे, इस बात का ध्यान रखने की जिम्मेवारी सभी राजनैतिक दलों की हे । लघुमति और बहुमति,सवर्ण और पिछडो,अमीर और गरीब इन सब राजकीय दावपेच में हमारी लोकशाही कहीं जंगलराज में परिवर्तित न हो जाये यह ध्यान रखने की जिम्मेवारी हम सब जागृत नागरिकों की हे ।
जहां स्वशासन न
हो वहां सुशासन कभी संभव नहीं हे । देश के संविधान और उसने दिए स्वतंत्रता के
अधिकारों का जतन करके देश विरोधी और संविधान विरोधी मानसिकता रखनेवाले लोगों को
सही दिशा बताने का कम हम सबको करना होगा । आइए हम सब भी संविधान में दी गए हमारे
फर्ज प्रामाणिकता से अदा करे । ज्ञाति-जाती,धर्म-संप्रदायों के और पक्षा-पक्षी के
राजकारण से बहार आकर ‘देश प्रथम’ की भावना के साथ देशहित में कार्यरत सभी शक्तिओं
को साथ देकर ‘नए भारत’ के निर्माण में सहभागी बनें यहीं आकांक्षा के साथ
‘वंदेमातरम्’ ।
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