બુધવાર, 31 ઑક્ટોબર, 2018

महामानव सरदार पटेल की राष्ट्रनिष्ठा और ५६२ रजवाड़ों के त्याग एवंम राष्ट्र के प्रति समर्पण को सो-सो सलाम


आज सरदार वल्लभभाई पटेल की जन्म जयंती है.प्रधानमंत्रीश्री नरेन्द्रभाई मोदी ने आज सरदारसाहब के विराट व्यक्तित्व को जचे ऐसी उनकी विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा का लोकार्पण सरदार सरोवर डेम पर करके ऐसे महामानव को आजतक की सर्वश्रेष्ठ श्रध्धांजलि अर्पण की हे.सरदार पटेल प्रखर राष्ट्रप्रेमी,कुशल संगठक और कौटिल्य जैसी राजकीय समज रखनेवाले राजपुरुष थे, जो देश के प्रथम नायब वडाप्रधान और गृहप्रधान थे.अत्यंत सादगीपूर्ण जीवन जीनेवाले सरदार साहबबातें कम और काम ज्यादाके सिध्धांत का अक्षरशः पालन करते थे.वो वर्णभेद,वर्गभेद,ज्ञातिवाद प्रांतवाद के विरोधी और राष्ट्रिय एकता के प्रखर हिमायती थे.

विचक्षण बुध्धि प्रतिभा के धनी सरदार पटेल अखंड भारत के शिल्पी के नाम से भी पहचाने जाते है.अगर सरदारसाहब होते तो आज भारत छोटे छोटे टुकड़ों में बट गया होता और अपने ही देश के कुछ हिस्सों में जाने के लिए हमें वीज़ा लेने की नौबत जाती ऐसी परिस्थिति का निर्माण हुआ होता.
१५ अगष्ट १९४७में हम अंग्रेजों की गुलामी से तो मुक्त हुए किन्तुं हमारे सामने बहुत बड़ी समस्या थी देशी रजवाड़ों के विलीनीकरण की.भारत में ५६५ जितनी रियासते थी.जिनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व था.अपने इलाके में अपनी सरकार,अपना सैन्य और अपनी हुकूमत थी.इन देशी रियासतों के भारत में विलीनीकरण के लिए जुलाई १९४७ के दिन सरदार पटेल के नेतृत्व में स्वतंत्र विभाग की रचना हुई.११ अगष्ट १९४७ के दिन दिल्ही के रामलीला मैदान में सरदार पटेल ने उनके भाषण में इन देशी रियासतों को भारत में जुड़ जाने का आह्वान किया.उसके बाद जूनागढ़,हैदराबाद और कश्मीर यह तीन राज्य ऐसे थे जो भारत संघ में जुड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन इनके अलावा ५६२ रियासतों ने भारत में जुड़ने के लिए खतपत्र में स्वेच्छा से अपने दस्तखत कर दिए.

आज एक छोटे से टुकड़े के लिए भी भाईओं को ज़गड़ते हुए हम अक्सर देखतें है.आज कुछ लोग सरकार की ओर से ज्यादा से ज्यादा सहाय प्राप्त करने हेतु आंदोलन करके देश की शांति एकता तोड़ने के दुष्कर्म करते रहते , तो दूसरी ओर इन ५६२ रजवाड़ों ने अखंड भारत की रचना के लिए अपने राज्यों और आज की तारीख में जिसकी किंमत अबजो-खर्वो में हे ऐसी जमींन-जायदाद सब कुछ हसी ख़ुशी देश को अर्पण कर दिया.

हमारे लिए गौरव की बात हे की समग्र भारत के ५६२ रजवाड़ों में से अखंड भारत में विलीन होने का सौप्रथम निर्णय भावनगर के महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी ने लिया था.देश को स्वतंत्रता प्राप्त हो गई,पाकिस्तान अलग हो गया लेकिन देशी रजवाड़ों के प्रश्नों का अभी कोई समाधान नहीं हुआ था.कई रियासतें स्वतंत्र रहकर अपनी सता टिकाये रखने के ख्वाब देख रही थी.कायदे आजम ज़िन्हा और उनके साथीदार पाकिस्तान में जुड़ने के लिए राजवीओं को ललचा रहे थे.उस वक्त गजरात में भी ३५० रियासते थी जिसमें से २२० रियासते सौराष्ट्र में थी.सौराष्ट्र के भावनगर के महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी को भी अलग राज्य के हिमायती राजवीओ के जुट में सामिल होने का आग्रह किया गया था, लेकिन महाराजा अपनी प्रजा को एक जवाबदेही शाशन व्यवस्था देना चाहते थे.उन्होंने दिल्ही जा कर गांधीजी को स्वयं मिलके अपना मत बताने का निश्चय किया.दिल्ही पहोंचकर महाराजा ने गांधीजी को विनम्रतापूर्वक बताया की मेरा राज्य में आपके चरणों में सोंप रहा हु.हमारी निजी मिल्क्त इत्यादि के बारे में आप जो भी निर्णय करेंगे वो हमें मंजूर है.आपकी आज्ञा के मुताबिक ही हम सब कुछ करेंगे.भावनगर के महाराजा की ऐसी उदारता एवं विनम्रता से गांधीजी बहुत प्रसन्न हुए.गांधीजी ने फिरभी अपने संतोष के खातिर उनसे पूछाक्या आपने महारानीजी और अपने भाईओं से इसके बारे में पूछा है ? तब महाराजा का जवाब था की मेरे इस निर्णय में उनका अभिप्राय भी शामिल हे.

इसके बाद भारत के दुसरे रजवाड़ों ने भी महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी के नक्शेकदम पर चलते हुए अपना राज्य,जमीन-जायदाद सबकुछ भारतमाता के चरणों में समर्पित कर दिया.

आज का यह अखंड भारत सरदारसाहब की प्रखर राष्ट्रनिष्ठा,प्रामाणिकता,दूरदर्शिता और ५६२ रजवाड़ों का राष्ट्रप्रेम,त्याग एवंम राष्ट्र के प्रति समर्पणभाव के आभारी है.आज सरदार पटेल जयंती के दिन हम सब अपने देश की एकता और अखंडितता के लिए कटिबध्ध बने.सब एक हो कर राष्ट्र को तोड़नेवाली ताकतों को पहेचानकर उसका देश निकाल करें और समर्पणभाव से देशहित के कार्य करते रहे यहीं अभ्यर्थना.जय सरदार - भारत माता की जयवंदेमातरम्

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