બુધવાર, 17 ઑક્ટોબર, 2018

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद : कुछ बात हे की हस्ती मिटती नहीं हमारी.


यूनान,मिस्र और रोम सब मिट गए जहां से,अबतक मगर हे बाकी नामों-निशां हमारा,सदियों से रहा हे दुश्मन दौरे जहां हमारा,मगर कुछ बात हे की हस्ती मिटती नहीं हमारी.

कविश्री इक़बाल की यह पंक्तियाँ हिन्दुस्तान की भव्य सांस्कृतिक विरासत का प्रतिबिंब हे.कई इतिहासविदों और संशोधको के मुताबिक हिंदू आर्य संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है और यह आज भी जिवंत हे और सदाकाल जिवंत रहेगी.हज़ारो सालों में हिन्दुस्तान पर कई आक्रमण हुए.सालों तक अनेक विदेशिओं ने शाशन किया.कई विधर्मी शाशनकर्ताओं ने इस देश पर राज किया फिरभी भारत अपने सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के साथ आज भी अडिग खड़ा है.’कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारीइसके पीछे का रहस्य कया है ? तो उसका उतर हेसांस्कृतिक राष्ट्रवाद

हमारी संस्कृति ही हमारे अस्तित्व का मुख्य आधार है और इसीलिए हमारे राष्ट्रवाद कोसांस्कृतिक राष्ट्रवादकहा गया हे.भारत देश संस्कृति प्रधान देश हे.हमारी संस्कृतिएक विश्वके भाव से जुडी हुई संस्कृति हे.जिस तरह बिना आत्मा के शरीर का कोई महत्व नहीं उसी तरह बिना संस्कृति का देश भी निष्प्राण शरीर जैसा ही हे.पशु-पक्षी,जिव-जंतु,पैड-पौधें,नदियांनदियां,पहाड़,सूर्य-चंद्र समेत प्रकृति के सभी घटकों के साथ सहस्तित्व का स्वीकार,उसके पूजन रक्षण के साथ सबके प्रति उदारता,संवेदनशीलता,मानवता और सहिष्णुता यहीं हमारी सांस्कृतिक विरासत है.भारत में बौध्ध,इसाई,मुस्लिम,पारसी,जैन इत्यादि धर्म के लोग रहेते हे.सबकी ज्ञाति-जाती और धर्म अलग हे लेकिन सबकी संस्कृति एक है.

इस प्रकार की संस्कृति का निर्माण हज़ारो-लाखो सालो की तपश्चर्या का ही परिणाम है.हिंदुत्व ही भारत की मूल संस्कृति हे.विदेशी विचारों से प्रभावित संकुचित मानसिकता रखनेवाले कई लोग हिंदुत्व को धर्म के सिमित दायरे में रखने के प्रयास वर्षो से कर रहे हे.वास्तव में हिंदुत्व का विचार सर्वग्राही हे.हिंदुत्व समग्र विश्व को सही मार्ग दिखाने के लिए समर्थ हे.हिंदुत्व ही भारत हे और भारत ही हिंदुत्व हे.हिंदुत्व ही भारत कासांस्कृतिक राष्ट्रवादहै.

१८५७ के बाद अंग्रेजों को समज में आया की भारत की राष्ट्रभावना का आधार राजनैतिक नहीं किन्तुं उसका आधार सांस्कृतिक हे.१८५७ की लड़ाई में सभी भारतियों ने पंथ,संप्रदाय,धर्म एवं जाती से ऊपर उठकर मातृभूमि की रक्षा के लिए ब्रिटिश शाशन को पड़कार फैंका था.अंग्रेज तब से समज गए की भारत की सांस्कृतिक एकता और प्रखर राष्ट्रवाद के होते हुए उस पर विजय हांसिल करना असंभव है. इसलिए अंग्रेजो ने अपनी नितियों को बदलकर भारत की सांस्कृतिक एकता को खंडित करने के रस्ते अपनाएं.ब्रिटिशनीतियों का बारीकी से अभ्यास करने से ध्यान में आता हे की हिंदुत्व की सिमित व्याख्या अंग्रेज कूटनीति की देंन हे.भारतीय जनमानस का धर्म के आधार पर बटवारा करने के बाद अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा प्रणाली और अभ्यासक्रम में भी बहोत बड़ा बदलाव किया.भारत के पारंपरिक कला-कौशल,भाषा,वेशभूषा,रिवाजों,खानपान की पध्धति और घरेलु उद्योगों को भी नष्ट करने के प्रयास किये.भारतियों के मनोबल को तोड़ने के सभी प्रयास किये किन्तुं उसमे उनको पूर्ण सफलता कभी नहीं मिली.

दमनकारी ब्रिटिश शाशन के सामने क्रांतिकारी आंदोलन भी सक्रीय हुआ किन्तुं उसमें भी कोई ज्ञाति-जाती धर्म के भेदभाव नहीं थे.पराधीन भारत के जनमानस में नवचेतना का संचार करने एवं राष्ट्र के पुनःजागरण हेतु राजा राममोहन राय,स्वामी विवेकानंद,लोकमान्य तिलक,महर्षि अरविंद जैसे कई महानुभावो ने भी अथाग प्रयत्न किये.सबका लक्ष्य एक ही था मातृभूमि की स्वतंत्रता.सबका राष्ट्रगान भी एक ही थावंदेमातरम्.इसी मंत्र के साथ देश के सैकड़ों युवाओं ने स्वराज्य के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था.

भारत में सीमाओं के आधार पर राजनैतिक राष्ट्रीयता का विचार आज़ादी के बाद का हे.आजादी के पहेले करीब २०० साल तक अंग्रेजों का शाशन रहा किन्तुं पुरे देश पर उनका राजनैतिक अधिकार नहीं था.सिर्फ विदेशनीति,संरक्षण,मुद्रा इत्यादि पर उनका अधिकार रहा किन्तुं शाशन व्यवस्था उनके अलावा ६०० जितने राजा-रजवाड़ों,जमींदारो और गिरासदारों के हाथ में थी.अलग अलग राज्य होने के बावजूद इन सभी शाशकों ने भारत का एक राष्ट्र मानकर स्वीकार किया था.सीमाओं से यह राज्य अलग थे किन्तुं संस्कृति से सभी एक थे.जिसको हम अखंड भारत के नाम से भी पहेचान ते है.

राष्ट्र के प्रति अप्रतिम समर्पण, यह भारतीय संस्कृति की अनोखी देंन है.भारत का नियमन उसकी संस्कृति करती हे,राजनीती कभी भी राष्ट्र का आधार नहीं बन शकी.राष्ट्र एक सांस्कृतिक एकम हे और राष्ट्रीयता उसका प्राण हे.भारत में शाशन व्यवस्था हंमेशा संस्कृति के जतन का उपकरण बनी रही.जब जब शाशनकर्ताओं ने संस्कृति विरोधी भूमिका अपनाई हे तब जनता ने ऐसे शाशनकर्ताओं को बदलने में जरा भी विलंब नहीं किया.

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद हमारी राष्ट्रीयता की नींव हे.विविधता में एकता ही उसका आधार हे.अलग धर्म,अलग ज्ञाति,अलग प्रान्त,अलग भाषा,अलग खानपान,अलग रहनसहन होने पर भी हमारी संस्कृति एक,विचार एक,मूल्य एक,मान्यताएं एक,भारत एक,यहीं हमारा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद हे.आजादी के सात दशकों बाद भी हमें हमारे इस भाव को टिकाये रखना अत्यंत आवश्यक हे क्यूंकि अपनी सताभूख को तृप्त करने हेतु कई राजकीयपक्ष अंग्रेजों की निति अपनाकर हमें प्रान्त के नाम पर,धर्म के नाम पर,ज्ञाति-जाती के नाम पर अलग करके हमारी सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करके फिरसे देश को टुकड़ों में बांटकर राज करना चाहते हे. तब फिर से हमारे देश के टुकड़े हो इसलिए हमारी सांस्कृतिक विरासत को याद करके राष्ट्र के पुनःनिर्माण हेतु कार्यरत राष्ट्रवादी ताकतों को साथ दे कर अखंड भारत के निर्माण में हम सब सहयोगी बने इसी प्रार्थना के साथभारत माता की जयवंदेमातरम्.

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