બુધવાર, 5 ડિસેમ્બર, 2018

आयेदिन हो रहे आंदोलन देश को कहाँ ले जायेंगे ??


जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते हे वैसे वैसे रोजाना कई लोग जैसे सिर्फ अकेले खुद को ही देश की फ़िक्र हे और खुद मानो सर्वगुण संपन्न हो इस तरह से कभी किसान के नाम पर, तो कभी युवाओं के नाम पर,कभी महिलाओं,कभी दलितों के नाम पर पांच-पच्चीस की टोली लेके निकल पड़ते हे.इन सभी आंदोलनोंमें आपको एक ही लोग बार बार नजर आयेंगें.यही लोग कभी किसान के स्वांगमें, तो कभी दलित बनकर नजर आते हे.वास्तवमें जिसके नाम पर आंदोलन का दिखावा होता हे उस वर्ग के लोगों का तो उनको कोई साथ ही नहीं होता.ऐसे बहुरुपियों को अब देश की जनता पहेचान गई हे.

आजकल के विरोधपक्ष भी अपना धर्म भूल गए हे.नीतिगत बाबतों में वाजबी मुद्दों के साथ विरोध करने के बजाय छोटी सी कोई घटना को ज्ञाति-जाती का ठप्पा लगाकर उसको आंदोलन का स्वरुप देने की विपक्ष की कुचेष्टा किसीभी देशप्रेमी को पीड़ा देती हे.२९ राज्य, केंद्रसाशित प्रदेश और १२५ करोड़ की आबादीवाले देशमें कहीं कहीं कोई छोटी-मोटी अनिच्छ्नीय घटनाएँ होती रहती हे.सरकार चाहे किसीभी पक्ष की हो इन घटनाओं की श्रंखला निरंतर चलती ही रहती हे.ऐसी घटनाओं में संवेदनशीलता बरतने की बजाय हरबार अपने राजकीय मुनाफे को नजर में रखनेवाले राजकीयपक्ष भली भोली जनता को तंत्र और सतापक्ष के विरुध्ध उकसाकर आंदोलन का जन्म देने के लिए कोशिष करते जब नजर आये तब समजना की हमारा देशप्रेम सता की गलियारों में कहीं बिछड़  गया हे.


किसी भी आंदोलन की सफलता उसके मुद्दों पर आधारित रहती हे.आंदोलन अगर स्वकेंद्री या फिर सिर्फ राजकीय स्वार्थ के खातिर हे तो ऐसे आंदोलन कभी सफल नहीं हुए.मगर जनसामान्य को छू लेनेवाला मुद्दा हो और प्रामाणिक,निष्ठावान और देशभक्ति से भरपूर नेतृत्व हो तो ऐसे आंदोलन जनआंदोलन बन जाते हे.गांधीजी के नेतृत्व में जितने भी आंदोलन हुए उसमे जनभागीदारी,सत्यनिष्ठा और गांधीजी का प्रामाणिक नेतृत्व था. इसलिए दमनकारी अंग्रेजो के अत्याचारों के सामने भी लोग डगे नहीं.इसी तरह नवनिर्माण आंदोलन में भी जयप्रकाश जैसा निष्ठावान नेतृत्व और जनभागीदारी थी इसीलिए इंदिरा गाँधी सरकार के अत्याचार और आपखुदी साशन के सामने सब लोग एकजुट होकर लड़े,आंदोलन सफल हुआ और लोकशाही की हत्या करके सर्मुखत्यारशाही साशन टिकाये रखने के मलिन इरादे चकनाचूर हो गए.

यह सब आंदोलन राजकीय आंदोलन थे. उसके साथ साथ समय समय पर कई सामाजिक आंदोलन भी हुए.समाज में फैली बदिओं को दूर करने हेतु कोई नेतृत्व उभर आये और उसकी बात और इरादे लोगों को सही लगे तब यह सामाजिक आंदोलन जनआंदोलन में परिवर्तित हो जाता हे.ऐसे सामाजिक आंदोलनों में कई बार शासक भी जुड़ जाते हे.शासक के व्यक्तित्व और इरादों ने अगर जनता के दिल को छू लिया तो फिर जनसैलाब अपनेआप उसके साथ जुड़ जाता हे.

भारत में पिछली सरकारोंने स्वच्छता के लिए कई योजनाएं चलाई किन्तुं उसमें सफलता नहीं मिली.वह सिर्फ सरकारी क्रियाकर्म बनकर रह जाता था. किन्तुं प्रधानमंत्रीश्री नरेन्द्र मोदीने १५वि अगस्त को लालकिल्ले की प्राचीर से स्वच्छ भारत अभियान की घोषणा की और ओक्टोबर खुदने ज़ाडू ले के सफाई का प्रारंभ किया और देशवासिओं को आह्वान किया तो यह बात जनता के दिल को छू गई और देखते ही देखते स्वच्छ भारत अभियान जनआंदोलन बन गया.इसी तरह शौचालय निर्माण का कार्य भी जनआंदोलन बन गया.

कोई भी आंदोलन अगर देश की सर्वांगीण उन्नति और जनसुखाकारी के लिए हो तो उसको व्यापक जनसमर्थन मिलता हे.लोग स्वयं उसके साथ जुड़ जाते हे.किन्तुं अगर पैसे कमाने के लिए या फिर अपने निजी स्वार्थ या राजकीय कटुता से किया गया आंदोलन हो तो वह फिर बहुत आगे चल नहीं पाता.भ्रष्टाचार के खिलाफ किये गए अन्ना हजारे के आंदोलन में जनता उमट पड़ी थी किन्तुं जैसे ही उसमें से राजकीयपक्ष ने जन्म लिया जनता ने साथ छोड़ दिया.गुजरात,महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में पिछले चार साल में ऐसे कई आंदोलनों का जन्म हुआ जिसमे निजी स्वार्थ,करोड़ों की कमाई और सता लालसा जुड़ती गई,आंदोलनकारी विपक्ष के प्यादे बनते गए और आखिर में जनता ने भी अपने आप को ठगा हुआ महेसुस किया.अततः ऐसे सभी आंदोलन विफल पुरवार हुए.लेकिन इन आंदोलनों से देश की संपति को करोड़ों का नुकशान हुआ उसका भुगतान कौन करेगा ? विदेशों में अपने देश की इज्जत ख़राब हुई उसका क्या ? हज़ारो मानव कलाकों की बरबादी से देश को हुए आर्थिक नुकशान का क्या ?

आप सभी को भी मेरी बिनती हे की कभी भी किसीके जोशीले भाषण सुनकर बिना सोचे किसी भी निजीस्वार्थ हेतु हो रहे आंदोलनों से जुड़े.उस समय शांति से यह सोचना की क्या मेरे देश की प्रगति समृध्धि के लिए यह रास्ता उचित हे ? क्या आंदोलन ही किसी समस्या का उतर हे ? सरकार ने समस्या के हल के लिए क्या कदम उठाये ? उससे क्या फायदा हुआ ? समस्या का सही निराकरण क्या हे ? इत्यादि जैसी बातों का विचार करके आगे बढ़ना चाहिए.सच्चाई यह हे की हम सब जब अपने निजीहित को छोड़कर देशहित के लिए सोचना शुरू करेंगे तभी हम देशविरोधी तत्वों का देशनिकाल कर पायेंगे.समृध्ध और विकसित भारत के निर्माण के लिए देश की एकता बहुमूल्य हे.किसी भी हालात में हम सब अपनी एकता और देश की अखंडितता बनाये रखे यहीं प्रार्थना.भारत माता की जय ,वंदेमातरम्

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